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आयुर्वेदिक औषधियां – भाग: 3 « सुदर्शन

 

चम्पा :

चम्पा के पेड़ बगीचों में लगाये जाते है। इसके पत्ते लम्बे-लम्बे महुआ के पत्तों की भाति पीले रंग के तथा कोमल होते हैं। इसके फूल पीले 4-5 पंखुडियों सहित 5-7 केसरों से युक्त होते है। मालवा देश में इसकी उत्पत्ति अधिक ………………

चीड़ :

चीड़ का बाहरी उपयोग कई प्रकार के रोगों को ठीक करने के काम में आता है जैसे –पूतिकर(Antiseptic) (नाक से बदबूदार गंध आना) ,प्रदाह(जलन), रक्त-वाहिनियों का. …. ……. ….

चिलबिल :

इसमें निम्न प्रकार के गुण पाये जाते है जैसे –रूक्ष (रूखापन) (खुश्क),अनुकूल, छोटा,तेज (तीखा या तिक्त), कटु-विपाक(खटा), उष्णवीय(गर्म प्रकृति वाला), कफ –पित्ताशामक… ……. ….

चिल्ला :

चिल्ला गर्म प्रकृति वाला, मूत्रल (पेशाब की मात्रा बढ़ाने वाला), रक्तशोधक (खून को सोखने वाला), कफवातनाशक(कफ को नष्ट करने वाला), धातुपुष्टिकर (वीर्य को.. …. ……. ….

चिरायता छोटा :

चिरायता छोटा,तेज (तिक्त या तीखा), शीतवीर्य(ठंडी प्रकृति वाला), दीपन( उत्तेजक), पाचक,रूचिकर(हाजमे को ठीक करने वाला), पित्तशामक (पित्त को नष्ट करने वाला…. ……. ….

चिरयारी :

यह स्वाद में तीखा (तिक्त, तेज), कड़वा(कसैली), शीतल(ठंढा) होता है। तथा यह बल्यवर्धक (शरीर को शक्ति देने वाला),वीर्यप्रद(वीर्य बनाने वाला), स्निग्ध(चिकना. …. ……. ….

चियन :

इसका बीज दाहकारक(जलन को करने वाला), वामक (उल्टी को बन्द करने वाला )तथा मछलियों को मारने वाला होता है। इसका बीज कटि कमर दर्द, संधिशूल.. …. ……. ….

चोबहयात :

खुश्क, दीपन्(उत्तेजक), पाचक, मूत्रल(अधिक मात्रा में पेशाब आना), पसीना अधिक लने वाला, धातुपरिवर्तक(पेशाब में धातु बन्द करना), हृद्य (लाभकारी), उष्ण(गर्म),…. ……. ….

छोंकर :

छोंकर छोटा, रूक्ष(रूखा), इसका पका फल खट्टा, मीठा (मधुर), कषाय(कषैला) तथा शीतवीर्य (ठंडी प्रकृति वाला), कफपित्त-शामक (कफ-पित्त-वात को नष्ट करने वाला…. ……. ….

छिरबेल :
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छिरबेल में कई प्रकार के रोगों को ठीक करनेÂ के गुणÂ पाए जाते है। जैसे-शीतवीर्य आंत्र संकोचक ,धातुपरिवर्त्तक ,मधुमेह (खून में शर्करा का बढ़ जाना) ,मूत्रल (पेशाब को बढ़ाने वाला.. …. ……. ….

चाय :

चाय एक प्रकार के पेड़ की पत्ती होती है। यह बहुत प्रसिद्ब है, जो बहुत मशहुर है। चाय नियमित पीने के लिए नहीं है। यह आवश्कतानुसर पीने पर लाभदायक होता है। चाय वायु और ठण्डी प्रकृति वालो के लिए हितकारी होती है………………

चकबड़ :

चकबड़ स्वादिष्ट, रुखा, हल्का होता है। यह वातपित्त, दाद, कुष्ठ, कृमि(पेट के कीड़े), सांसो की परेशनि, बवासीर, घाव, मेद आदि रोगो को समाप्त करता है। चकबड़े के पत्तों की सब्जी पित्त को बढ़ाने वाला व गर्म कफ, वात, दाद………..

चकोतरा :

सभी रसदार फलों में चकोतरा सबसे बड़े आकार का फल होता है। चकोतरा संतरे की प्रजाति का फल है। परन्तु संतरे की अपेक्षा चकोतरे में सिट्रिक अम्ल अधिक और शर्करा कम होता है। इसके अन्दर का गुदा पीले और………………

चाकसू :

चाकसू काबिज होता है यह सूजन को पचाता है आंखों की रोशनी को बढ़ाता है। आंख से पानी निकलने में यग लाभकारी होता है। घावों के लिए यह लाभदायक होती है। खासतौर पर इन्द्री के घावों के लिए यह विशेष रूप से………..

चालमोंगरा Hydnocarpus oil :

चालमोंगरा के पेड़ दक्षिण भारत, में पश्चिम घाट के पर्वतों पर दक्षिण घाट के पर्वतों पर, दक्षिण भारत, ट्रावनकोर में तथा श्रींलका में अधिक मात्रा में पाये जाते है। इसके बीजो से प्राप्तो होने वाले तेल का तथा बीजों का औषधी में………………

चमेली :

चमेली की बेल आमतौर पर घरों, बगीचों में आमतौर पर सारे भारत में लगाई जाती है जिसके फूलों की खुशबू बड़ी मादक और मन को प्रसन्न करती है। उत्तर प्रदेश के फर्रूखाबाद, जौनपुर, और गाजीपुर जिले में इसे विशेष………..

चना (GRAM) :

चना शरीर में ताकत लाने वाले और भोजन में रूचि पैदा करने वाले होते है। सूखे भुने हुए चने बहुत रूक्ष और वात तथा कुष्ठ को कुपित करने वाले होते है। उबले हुए चने कोमल, रूचिकारक, पित्त, शुक्रनाशक, शीतल, कषैले………..

चनार :

चनार की जली हुई छाल का लेप बदन को साफ करता है। सफेद कुष्ठ(कोढ़) के लिए यह बहुत ही लाभकारी होता है। इसके ताजा फलों का काढ़ा सांप इत्यादि जहरीले………..

चंदन :

चंदन की पैदावार तमिलनाडु, मालाबार और कर्नाटक में अधिक होती है। इसका पेड़ सदाबहार, 30 से 40 फुट ऊंचा और अर्द्धपराश्रयी होता है। बाहर से छाल का रंग मटमैला और काला और अंदर से लालिमायुक्त लम्बे………………

लाल चंदन :

लाल चंदन का उपयोग करने से खूनी दस्त और बुखार बंद हो जाते है। यह मानसिक उन्माद(पागलपन) को समाप्त कर देता है। लाल चंदन गुणों में सफेद चंदन से अधिक लाभकारी होता है। यह सूजन, दाह और जलन को………..

चंदन सफेद :

सफेद चंदन मन को प्रसन्न करता है। यह दिल और अमाशय को बलवान बनाता है। यह सूजन को पचाता है। रक्त को बढ़ाता है। यह उन्माद और आन्तरिक गर्मी को दूर करता है। इसे घिसकर लेप करने से मस्तिष्क की……………...

चांदी (SILVER) :

चांदी दिल और दिमाग को शक्तिशाली व बलवान बनाता है। यह मांस, हड्डी, शरीर के अंदर की चर्बी तथा शरीर के सभी अवयवों को पुष्ट करती है। यह वीर्य को गाढ़ा करती है। बलगम को दूर करती है तथा मेद रोग यानी………….

चांदनी के फूल :

चांदनी का फूल दिल को मजबूत और शक्तिशाली बनाता है, यह मन को प्रसन्न करता है। मानसिक उन्माद(दिमागी परेशानी) को बढ़ाता है। यह दिल की धड़कन जो………………

चन्द्रसूर :

चन्द्रसूर वात, बलगम और दस्त को ठीक करता है। यह बलवर्द्धक और पुष्टिकारी होता है। चन्द्रसूर गुल्म को खत्म करता है, स्त्री के स्तनों में दूध को बढ़ाता है। इसको पानी में पीसकर पीने तथा इसका लेप करने से खून के रोग………….

चरस :

चरस के सेवन से शरीर में नशा आता है और मैथुन के समय वीर्य को अधिक देर तक रोकता है। यह सूजनों को पचाती है। होशोहवाश को खो देती है और बेहोशी उत्पन्न………………

चरबी :

चरबी सूजन को पचाती है। दर्द को शान्त करती है। यह बदन के अवयवों में तरावट लाती है, खासकर पुट्ठों को। इसे खाने से शरीर शक्तिशाली, मोटा और स्फूर्तिवान हो जाता है। सभी जनवरों की चरबी उस जानवर के मांस के………….

चौलाई :

चौलाई पूरे साल मिलने वाली सब्जी है। इसका प्रयोग बहुतायत से किया जाता है। यह पित्त-कफनाशक एवं खांसी में उपयोगी है। बुखार में भी इसका रस पीना अच्छा रहता है। ज्यादातर घरों में इसकी सब्जी बनाकर………………

चावल :

चौलाई पूरे साल मिलने वाली सब्जी है। इसका प्रयोग बहुतायत से किया जाता है। यह पित्त-कफनाशक एवं खांसी में उपयोगी है। बुखार में भी इसका रस पीना अच्छा रहता है। ज्यादातर घरों में इसकी सब्जी बनाकर………………

चावल मोंगरा :

चावल मोगरा का अधिक मोंगरा गोटियों को तोड़ता है। यह शरीर को शुद्ब करता है। इसका उपयोग करने से कुष्ठ(कोढ़), खुजली और सफेद दाग तथा चमड़ी के रोग दूर………….

चंवरा :

चंवरा तृप्तिकारक, वातकारक, रूचि पैदा करने वाली, स्त्री के स्तनों में दूध बढ़ाने वाली तथा शरीर को शक्तिशाली बनाती है। यह मल को रोकती है। यह गन्ने के समान ही………………

छाछ :

छाछ या मट्ठा शरीर में उपस्थित विजातीय तत्वों को बाहर निकालकर नया जीवन प्रदान करता है। यह शरीर में प्रतिरोधात्मक(रोगों से लड़ने की शक्ति) शक्ति पैदा करता है। छाछ में घी नहीं होना चाहिए। गाय के दूध से………….

छाल :

बूटी अथवा पेड़ों की छाल और बक्कल को युवावस्था में ही उतारना चाहिए। मुर्झाये एंव सूखे पेड़ की छाल में गुण कम हो जाते है। पेड़ की हरी भरी अवस्था में छाल आसानी से उतर जाती है। अतः बसंत ऋतु से पहले या………………

छरीला :

छरीला काबिज होती है। यह सूजन और अफारा(पेट की गैस) को मिटाती है। यह प्रकृति के समान आचरण करती है। छरीला का काढ़ा दिल के लिए अच्छा होता है। छरीला उन्माद, पागलपन, उल्टी, मिर्गी और जी मचलाने में………….

छतिवन :

छतिवन कषैला, गर्म, कड़वा, अग्नि को दीपन करने वाला, सारक, स्निग्ध तथा दिल के लिए लाभकारी, मदगंध से युक्त तथा पेट के कीड़ों, दमा, कोढ़(कुष्ठ), गांठे, घाव, रुधिर विकार, त्रिदोष (वात, पित्त, कप) नाशक, दर्द……………...

छोंकर :( “समी”)

छोंकर को “समी” भी कहते है। इसके पेड़ होते है। इसके पत्तों की आकृति इमली के पत्तों के आकार की होती है। इसका उपयोग हवन के काम में भी किया जाता है। बहुत से स्थानों पर विजयदशमी (दशहरा) के दिन इसका पूजन………….

छुई-मुई :

छुई-मुई शीतल, तीखा, रक्तपित्त, अतिसार(दस्त) तथा योनिरोग नाशक है।………

छुहारा :

छुहारा का लैटिन नाम फीनिक्स डेक्टाइलीफेरा है। यह प्रसिद्ध मेवाओं में से एक है। छुहारे एक बार में चार से अधिक नही खाने चाहिए,वरना इससे गर्मी होती है। दूध में भिगोकर छुहारा खाने से इसके पौष्टिक गुण बढ़ जाते………….

चिचींड़ा (SNAKE GOURD) :

चिचींड़ा शरीर के रूखेपन और कमजोरी को खत्म करता है। यह पाचक है। हल्का होता है। गर्म स्वभाव वालों के लिए यह लाभकारी होता है। यह भूख को बढ़ाता है। इसकी जड़ दस्तावर है। यह गर्मी और सुर्ख मादा के लिए………………

चीड़ :

चीड़ गर्म, तीखी और खांसी को ठीक करने वाली होती है। यह अग्नि को प्रदीप्त करती है। इसके ज्वादा सेवन करने से पित्त और श्रम दूर होता है।…………….

चिकनी सुपारी :

चिकनी सुपारी काबिज होती है। यह दस्तों को बंद करती है तथा दिल और आमाशय को बलवान बनाती है।………………

चीकू :

चीकू का पेड़ मूल रूप से दक्षिण अफ्रीका के उष्ण कटिबंध का वेस्टंइडीज द्वीप समूह का है। वहां यह’चीकोज पेटी’ के नाम से प्रसिद्ध है। परन्तु चीकू वर्तमान समय में सभी…………….

चिलगोजा :

चिलगोजा धातुवर्द्बक होता है। यह भूख को बढ़ाता है। यह गुर्दे मसाने और लिंगेद्री को मजबूत व शक्तिशाली बनाता है। चिलगोजे अत्यधिक मर्दाना शक्तिवर्द्धक होते है। इसलिए 15 चिलगोजे रोजाना खाएं।………………

चीनी और शक्कर :

चीनी और गुड़ का छोटी आंत में पाचन होने के बाद खून में शोषण होता है। खून में घुल जाने के बाद चीनी का ग्लाइकोजन में रूपान्तर होकर भविष्य के उपयोग के लिए यकृत (जिगर) में संग्रह होता है। इस अभिशोषण की………………

चिरौजी :

चिरौंजी मलस्तम्भक, स्निगध, धातुवर्द्धक कफकारक बलवर्द्धक और वात विनाशकारी होता है। यह शरीर को मोटा और शक्तिशाली बनाता है। चिरौंजी कफ को दस्तों के द्वारा शरीर से बाहर निकाल देती है। यह चेहरे के रंग को…………….

चिरायता :

चिरायता आमतौर पर आसाने से उपलब्ध होने वाला पौधा नही है। चिरायता का मूल उत्पादक देश होने के कारण नेपाल में यह अधिक माता में पाया जाता है। भारत में यह हिमाचल प्रदेश में कश्मीर से लेकर अरूणाचल तक………………

चिरचिटा :

गुर्दे के रोग- 5 ग्राम से 10 ग्राम चिरचिटा की जड़ का काढ़ा 1 से 50 ग्राम बह शाम मुलेठी, गोखरू और पाठा के साथ खाने से गुर्दे की पथरी खत्म हो जाती है। इसकी क्षार अगर भेड़ के पेशाब के साथ खाये तो गुर्दे की पथरी में ज्यादा लाभ होता है।…………….

चोबचीनी :

चोबचीनी ताकत को बढ़ाती है। खून को साफ करती है। यह शरीर की गर्मी को स्थाई बनाती है। यह फालिज लकवा और दिमागी बीमारी के लिए बहुत हानिकारक होता है। यह गर्भाशय और गुदा बीमारियों में लाभदायक………..

चोब हयात :

चोब हयात सूजन को पचाता है। यह दर्द को रोकता है। जहर को पचाता है। यह काबिज है। यह हैजा दस्तों और जी मिचलाने को रोकती है, इसका मरहम घाव को भर…………….

छोंगर :

छोंगर फोड़ो को पकाकर फोड़्ती है। इसका फल कर्ण मूल और भगंदर को दूर करता है।………..

चोक :

चोक रेचक, दस्तावर, कड़वी, भेदक, ग्लानिकारक, पेट के कीड़े, खुजली, जहर, अफारा(गैस), बलगम, पित्त, रूधिर, कोढ़ को नष्ट करती है। इसके प्रयोग से बांझ स्त्रियों को…………….

चुकन्दर के बीज :

चुकन्दर के बीजों के प्रयोग से पेशाब और मासिक धर्म खुलकर आता है तथा यह कफ को छांटता है।………..

चुकन्दर :

चुकन्दर एक कन्दमूल है। चुकन्दर में ‘प्रोटीन’ भी मिलती है। यह जठर और आंतो को साफ रखने में उपयोगी है। चुकन्दर अतिशय गुणकारी और निर्दोष है। यह रक्तवर्द्धक(खून को साफ करने वाला), शक्तिदायक( शरीर में ताकत…………….

चूहाकानी :
चूहाकनी के उपयोग से पेशाब खुलकर आता है। यह सूजनों को खत्म करती है। यह लकवा, फालिज और मिर्गी के लिए लाभदायक होती है।……………..

चोपचीनी गुग्गुल :

द्वीपान्तर वचा(मघुस्नुही, चोपचीनी) की जड़ तथा गुग्गुल एक भाग लें। गुग्गुल को अच्छी प्रकार घोटकर इसमें द्वीपान्तर वचा का चूर्ण मिलाते है। मिश्रण को अच्छी प्रकार मर्दन करें तथा 0.5 से 1.0 ग्राम की वटी बना लेते…………….

छोटी इलायची :

छोटी इलायची तीखा, शीतल, हल्की, वात, बलगम, दमा, खांसी, बवासीर, मूत्रकृच्छ(पेशाब में जलन) को नष्ट करती है।…………….

चुम्बक :
चुम्बक गर्भाशय के दर्द को दूर करता है। और बच्चा होने में आसानी करता है। इसकी पिसी हुई चुटकी घाव पर छिड़कने से घाव का बहता हुआ खून बंद हो जाता है और…………….

चूना :

लगभग 50 ग्राम चूने की डली को 500 ग्राम पानी में रात को भिगोकर रख दें। सुबह इस पानी को कपड़े से छान लेते है। बच्चे की उम्र के अनुसार 1 चम्मच या आधी चम्मच कप में इस पानी को 4 गुना ताजा पानी मिलाकर पीने से उल्टी, दस्त खट्टी डकारे, दूध उलटना, उबकाई आदि ठीक हो जाती है।…………….

कॉफी :
कॉफी, चाय जैसा ही दूसरा पेय है। परन्तु कॉफी में गुण की अपेक्षा अवगुण अधिक होते है। कुछ लोग तो कॉफी को जहर के समान मानते है। दिमाग की थकान मिटाने हेतु कॉफी का सेवन किया जाता है। कॉफी मूत्रवर्द्धक…………….

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