बाजरा :
बाजरा भारत में सभी जगह पायी जाती है। यह मेहनती लोगों का एक प्रमुख आहार होता है। बाजरे की रोटी पर घी या तेल की आवश्यकता नहीं पड़ती है। कुछ लोगों का एक प्रमुख आहार होता है। बाजरे की रोटी पर घी या तेल………………
बारतग :बारतग एक प्रकार की लता होती है, जिसके पत्ते दिखने में बकरे के जीभ के समान लगता है। यह बूंटी बागों मे………………
बबूल :वास्तव में बबूल रेगिस्तानी प्रदेशो का पेड़ है। बबूल के पेड़ की छाल एवं गोंद प्रसिद्ध व्यावसायिक द्रव्य है। इसकी पत्तियां बहुत छोटी होती है। यह कांटेदार पेड़ होते हैं। संपूर्ण भारत वर्ष में बबूल के लगाये हुए तथा जंगली पेड़………………
बबूल का गोंद :
बबूल की गोंद का प्रयोग करने से छाती मुलायम होती है। यह मेदा (आमाशय) को शक्तिशाली बनाता है। यह आंतों को भी मजबूत बनाता है। यह सीने के दर्द को समाप्त करता है तथा गले की आवाज को साफ करता है। इसका………………
बबूना देशी या मारहट्ठी :बाबूना देशी(मारहट्ठी) पेट के अन्दर की गांठों को खत्म करता है। इसके सेवन करने से कफ और वात को दस्त के रुप में बाहर निकालता है।………………
बच :बच शरीर के खून को साफ करती है। इससे धातु की पुष्टि होती है। बच कफ(बलगम) को हटाती है और गैस को समाप्त करती है। दिल और दिमा को कफ के रोगों से दूर करती है। फलिज और लकवा से पीड़ित रोगियों के लिए………………
बालछड़ :
यह दिल और दिमाग को मजबूत और शक्तिशाली बनाता है। बालछड़ के सेवन से आमाशय पुष्ट होता है और पथरी को गलाता है। यह मुँह की दुर्गन्ध को दूर करता है। इसका सुरमा बनकर लगाने से आँखों की देखने की………………
बालगों :यह दिल और दिमाग को मजबूत और शक्तिशाली बनाता है। यह पागलपन और दिल की घबराहट को दूर करता है। यह दस्त के लिए गुलाब के रस के साथ इसका प्रयोग करना चाहिए। यह पेचिश और पेट के मरोड़ को खत्म………………
बालू :बालू ठंडा होता है। यह गर्मी को समाप्त करता है तथा फोड़ों को ठीक करता है। यह घावों मुख्य रुप से सीने के घावों को भरता है। इससे सिकाई करने से वात रोग समाप्त हो जाता है। आमवात(गठीया) और जलोदर(पेट में………………
बालूत :बालूत से कब्ज पैदा होती है तथ यह दस्तों को रोकता है। यह शरीर के किसी भी भाग से खून का निकलना बन्द करता है और यह मुख्यतः मुँह से निकलने वाले खून को बन्द करता है। यह आंतों के घावों और उससे पैदा हुए………………
बन चटकी :बन चटकी के फूल और पत्तों को पीसकर किसी भी प्रकार के सूजन पर लगाने से लाभ मिलता है। इससे पेशाब खुलकर आता है। प्रसव के दौरान गर्भवती महिला को इसे………………
बनकेला :बनकेला के विभिन्न गुण होते हैं। यह ठंडक प्रदान करती है। बनकेला खाने में मीठा और स्वादिष्ट होता है तथा इसके फल रस से भरा होता है। यह शरीर को मजबूत और शक्तिशाली बनाता है। यह मनुष्य की धातु शक्ति को………………
बांदा :बांदा, बलगम, वात, खूनी विकार फोड़े और जहर के दोषों को समाप्त करता है। बांदा भूत से संबंधित परेशानियों को दूर करता है। वंशीकरण आदि कार्यो में इसका प्रयोग किया जाता है। यह वीर्य को मजबूत करता है और बढ़ाता………………
बंडा आलू :बंडा आलू स्त्री प्रसंग की इच्छा को बढ़ाता है। यह नपुंसकता को दूर करता है। बंडा आलू खून की बीमारी यानी खून के फसाद को मिटाता है तथा यह पेशाब का रुक-रुक कर आनी (मूत्रकृछ)की बीमारी को खत्म करता………………
बन्दाल Bristilufiya, Lyufayekineta :बन्दाल कड़वी, वमनकारक, बलगम, बवासीर, टी.बी. हिचकी, पेट के कीड़ों तथा बुखार को समाप्त करता है। इसका फल गुल्म, दर्द तथा बवासीर को दूर करता है।………………
बंगलौरी बैंगन :बंगलौरी बैंगन का कर्नाटक में दाल, चटनी व सब्जियों को बनाने में प्रयोग किया जाता है। इसमें पानी का तत्व लगभग 93 प्रतिशत होता है और इसमें कैल्शियम भी पाये जाते हैं। कम कैलोरी वाली सब्जी होने के कारण यह………………
बनियाला :यह पित्त को नष्ट करता है। यह पित्त से पीड़ित रोगियों के लिए यह बहुत ही लाभकारी होता है।………………
बनककड़ी :
यह गर्म तथा कड़वी होती है। यह भेदक, बलगम को खत्म करने वाले, पेट के कीड़े और खुजली को दूर करता है तथा बुखार को खत्म करता है।………………
बनपोस्ता :बनपोस्ता आँखों के घावों को ठीक करता है और मुँह में लार की मात्रा को बढ़ाता है। बनपोस्ता एक प्रकार की घास होती है, जो बिल्कुल पोस्तादाना के समान होती है।………………
बांस (Bambu), (Bambu savlgerees) :
बांस का पेड़ भारत में सभी जगहों पर पाया जाता है। यह कोंकण(महाराष्ट्र) में अधिक मात्रा में पाया जाता है। यह 25-30 मीटर तक ऊंचा होता है। इसके पत्ते लम्बे होते हैं। बांस का पेड़ बहुत मजबूत होता है। इसका अन्दाज इस………………
बंशलोचन :बंशलोचन शरीर की धातुओं को बढ़ाता है। यह वीर्य की मात्रा में वृद्धि करता है और धातु को पुष्ट करता है। बंशलोचन स्वादिष्ट और ठंडा होता है तथा प्यास को रोकती है। बंशलोचन खाँसी, बलगम, बुखार, पित्त खून की………………
बेद-मुश्क (Salix Caprea) :
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बेदमुश्क चिकना, कड़वा, तीखा, ठंडा, वीर्य, वात, पित्त, कफ को नष्ट करने वाला, पाचन शक्ति बढ़ाने वाला, जलन को समाप्त करने वाला, लीवर को बढ़ाने वाला, खून को जमाने वाला, मूत्रवर्द्धक, कामवासना को……. ….
बेद-सादा (SALIX ALBA) :
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बेद सादा ठंडा, रुखा, कड़वा, तीखा, सुगंधित, जलन को शांत करने वाला, दिल और दिमाग के लिए ताकत, सौमनस्यजनक, मूत्रवर्द्धक, दर्द को दूर करने वाला और पैत्तिक बुखार……. ….भगलिंगी (BHANGLINGES) :
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भगलिंगी उपलेपक, सूजन को दूर करने वाला और चिरगुणकारी पौष्टिक है। भूख ना लगना और भोजन करने का मन ना करना के रोग में भगलिंगी की जड़ को काली मिर्च……. ….बिदारीकंद (भुई कुम्हड़ा) (IPOMOEA PANICULATA) :
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बिदारीकंद स्वाद में कडुवा और तीखा होता है तथा यह कषैला, मधुर, शीतवीर्य, स्निग्ध, अनुकुल, पित्तशारक (पित्त से उत्पन्न कब्ज को नष्ट करने वाला), वीर्यवर्द्धक, कामोत्तेजक, रसायन (वृद्धावस्था नाशक औषधि), बलवर्द्धक, मूत्रवर्द्धक……. ….
बिही (cydionia vulgaris) :
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बिही अग्निमांद्य, अरुचि, उल्टी, प्यास, पेट दर्द, मस्तिष्क विकार, बेहोशी, सिरदर्द, हृदय दुर्बलता, रक्तविकार, यकृतविकार, खून की कमी, रक्तपित्त, मूत्रकृच्छ, पैत्तिक विकार, सामान्य दुर्बलता……. ….
बिखमा (ACONITUM PALMATUM) :
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बिखमा तीखा, कटु विपाक, उष्णवीर्य, कफवातहर, पाचन, संकोचक, कटु, पौष्टिक, दर्दनाशक, पेट के कीड़े, बुखार, अग्निमांद्य, अजीर्ण, अफारा, अतिसार (दस्त) ग्रहणी, उल्टी, हैजा, आमाशय तथा आंतों से……. ….बरागद(वट) Benyan tree, Ficus Indicus :
भारत में बरगद के पेड़ को पवित्र माना गया है, इसे पर्व व त्यौहारों पर पूजा जाता है। इसके पेड़ बहुत ही बड़ा व विशाल होता है। बरगद की शाखाओं से जटाएं लेटकर जमीन तक पहुँचती है और तने का रुप ले लेती………………
ब्रह्मदण्डी :ब्रह्मदण्डी खून को साफ करता है, घावों को भरता है, वीर्य की कमजोरी को दूर करता है। यह दिमाग और याददाश्त की शक्ति को बढ़ाता है। त्वचा के सफेद दाग और बीमारियों को दूर करता है। यह गले और चेहरे को साफ………………
बरसंग यानी मीठा नीम :
मीठा नीम सन्ताप, कोढ़(कुष्ठ) और रक्तविकार(खून के रोग) को खत्म करता है। यह पेट के कीड़े, भूत बाधा और कीड़ो के काटने से उत्पन्न जहर को खत्म करता………………
बथुआ (White Goose Foot) :बथुआ दो प्रकार का होता है जिसके पत्ते बड़े व लाल रंग के होते हैं। उसे गोड वास्तुक और जो बथुआ जौ के खेत में पैदा होता है। उसे शाक कहते हैं। इस प्रकार बथुआ छोटा, बड़ा, लाल व हरे होने के भेद से दो प्रकार के होते………………
बथुवे के बीज :बथुए के बीज गांठों को दूर करता है। यह दस्तों को लाने वाला, जलोदर और कांबर के लिए बहिता ही लाभकारी होता है। यह पेशाब करने में परेशानी को दूर करता है। बथुआ का बीज गुर्दे और आंतों की कमजोरी को दूर………………
बायबिडंग Baybidang, Embeliaribes :
भारत के पहाड़ी क्षेत्रों में बायबिडंग की मोटी वा बड़ी-बड़ी लतायें, अपने आप उगकर पास के पेड़ के सहारा लेकर ऊपर चढ़ जाती है। इसकी शाखाएं खुरदरी, गठों वाली, बेलनाकार, लचीली और पतली होती है। इसके पत्ते 2 से………………
बीजबन्द :यह वीर्य को बढ़ाता है। इससे वीर्य खूब पैदा होता है और गाढ़ा होता भै। यह पीठ की हड्डियों और कमर को बलवान बनाता है………………
वेलिया पीपल :
वेलिय पीपल हल्का, स्वादिष्ट कड़वा और गर्म होता है। यह मल को रोकता है। वेलिया पित्त जहर और खून की खराबी से होने वाले रोगों को दूर करता है………………
बैंगन Eggplant :बैंगन का लैटिन नाम- सोलेनम मेलोजिना है और अग्रेजी भाषा में इगपलेंट नाम से जाना जाता है। भारत में प्राचीनकाल से ही बैंगन सर्वत्र होते हैं। बैंगान की लोकप्रियता स्वाद और गुण के नजर से ठंडी के मौसम………………
भद्रदन्ती :
भद्रदन्ती चरपरी, गर्म, दस्तावर, कीड़ों को मारने वाले, दर्द को दूर करने वाला, कोढ़, आमावात(गठिया) और उदर रोग(पेट के रोग) दूर करने वाल होता………………
भद्रमोथा :भद्रमोथा चरपरा, दीपन, पाचक, कषैला, रक्तपित्त, प्यास, बुखार, आरुचि(भोजन करने का मन न करना) और कीड़ों को दूर करता………………
भाही जोहरा :भाही जोहरा सभी प्रकार के कफ और गाढ़े खून को दस्त के रास्तें बाहर निकालता है। यह गैस को मिटाता है और गठिया और कमर दर्द को दूर करता है।………………
बाबूना गाव (COTULA ANTHMOIDES) :
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बाबूना गाव प्रकृति में गर्म और रुखा होता है। इसके गुण बाबूना के ही समान होते हैं। यह कफ और वात के विकार को मल के साथ………………
बच सुगंधा (KAEMPFERIA) :
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श्वांस और खांसी से पीड़ित रोगी को बच सुगंधा के जड़ के टुकड़े को पान के बीड़े के साथ रखकर चबाकर खाने से लाभ होता है। इससे मुंह से सुगंध……. ….
बच्छनाग (श्वेत या दूधिया) :
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बच्छनाग (श्वेत या दूधिया) के गुण काले बच्छनाग के गुणों के समान परन्तु विशेष होते हैं। इसे थोड़ी सी मात्रा में इसे बार-बार देने से दर्द तथा रक्त के……. ….
काला बच्छनाग (ACONITUM FEROX) :
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काला बच्छनाग लघु, रुखा, गर्म, विपाक, तीखा, कषैला, मादक, होता है। यह अपने रुक्ष गुण से वात को, उष्ण गुण से पित्त तथा रक्त को कुपित करता है। तीक्ष्ण गुण से यह बुद्धि को……. ….बादावर्द (VOLUTARELLA DIVARICATTA) :
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बादावर्द पौष्टिक, पेट को साफ करने वाला, रक्तस्तम्भक, दर्द को नष्ट करने वाला, गर्भधारण में सहायक तथा पुराने से पुराने अतिसार को……. ….बधारा (ERIOLAENA QUNI) :
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बधारा कडुवा, तीखा, सुगंधित, संकोची, पिच्छिल, शांतिवर्द्धक, धातुपरिवर्तक, मूत्रवर्द्धक, कामशक्तिवर्द्धक, कफनाशक, कमर का दर्द, जोड़ों का दर्द, उपदंश, प्रमेह, सूजाक आदि……. ….
बादियान खताई (ILLICIUM VERUM) :
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बादियान खताई के फल मीठे, दीपन, पाचक, उत्तेजक, दर्द को दूर करने वाला, उदर-वातहर, कफघ्न, मूत्रवर्द्धक, सारक है। यह अपच, अग्निमांद्य, बुखार, अतिसार (दस्त), प्रवाहिका, आध्यान, जुकाम, खांसी, आदि विकारों में……. ….बहमन सफेद (CENTAUREA) :
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बहमन सफेद लघु, कसैला, मीठा, उष्णवीर्य, मधुऱ विपाक, वात, कफ, पित्तनाशक, दीपन (उत्तेजक), अनुमोलन, रक्तस्तम्भक, वेदना स्थापक, धातुवर्द्धक, बालों की वृद्धि, श्वासनलिका तथा अन्य अंगों की सूजन……. ….
बैबीना (MUSSSAENDRA FRONDOS) :
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बैबीना गर्म, कडुवा, कषैला, तीव्र गंध, कफ-वातनाशक, दीपन (उत्तेजक), सफेद दाग, कफ, भूत-प्रेत, ग्रह-पीड़ा निवारक, धातु परिवर्तक, तथा मूत्रवर्द्धक होता है। इसकी जड़……. ….बाकला (PHASSSEOLUS VOLGARIS) :
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बाकला की ताजी फली अकेले या मांस के साथ पकाकर खाने से पुष्टि प्राप्त होती है। सूखे और ताजे बीजों की सब्जी भी बनाते हैं। बाकला के सूखे बीजो के छिलके को निकालकर……. ….
बाकेरी मूल (CAESALPINIA DIGYNA) :
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बाकेरीमूल, उष्णवीर्य, सांभक, वातनाशक, शोधक, त्वचा के विकार, कीटाणुनाशक और घाव को भरने वाला होता है। इसका अधिक मात्रा में सेवन करने से यह मदकारक (नशीला) प्रभाव डालता है। इसका उपयोग करने से……. ….बांझ ककोड़ा(बंध्या कर्कोटकी) :
बांझ ककोड़ा बलगम को दूर करने वाला, जख्मों को साफ करने वाला, सांपों के जहर को समाप्त करने वाला होता है………………
भसींड़ :भसींड़ कषैला होता है, यह मीठा, भारी तथा मल को रोकने वाला होता है। यह आँखों के लिए लाभकारी, वीर्यवार्द्धक, रक्त पित्त, जलन, प्यास, बलगम और वातपित्त को दूर करती है। यह गुल्म, पित्त, खाँसी, पेट के कीड़े,………………
भूरी छरीला :
भूरी छरीला तीखा, शीतल और सुगन्ध देने वाला होता है। यह हल्का और दिल के लिए हितकारी है। यह रुचि को बढ़ाता है और वात, पित्त, गर्मी, प्यास, उल्टी आदि को दूर करता है। इसका प्रयोग सांस(दमा), घाव, खुजली आदि के………………
भूसी(गेहूँ का चोकर) :यह सूजन और बलगम को पचाती है और शरीर को शुद्ध और साफ करती है। यह छाती की खर-खराहट और पुरानी खाँसी व धांस को बंद करती है। इसके साथ काला नमक मिलाकर पोटली बनाकर सेंकने से रोंवों के मुँह………………
बिजौरे का छिलका :
यह दिल को प्रसन्न रखता है। कब्ज उत्पन्न करता है। खून को पित्त से साफ करता है। गर्मी से होने वाली वमन(उल्टी) को बंद करता है। यह दिल और आमाशय को शक्तिशाली बनाता है। आंतों की गर्मी को शान्त करता ………………
बिलाई लोटन :बिलाई लोटन दिल और दिमाग को स्वस्थ्य व शक्तिशाली बनाता है। यह आमाशय को मजबूत करता है और याददाश्त और बुद्धि में वृद्धि करती है। बिलाई लोटन मन को प्रसन्न रखती है। यह कफ के सभी रोगों को नष्ट………………
बिल्लौर :बिल्लौर सुरमा आँखों के अनेक रोगों को दूर करता है। बिल्लौर गले में लटकाने से छोटे बच्चों के रोग, आँखें निकल आना, शरीर में ऐंठन होना तथा सोते समय………………
बिनौला :बिनौला धातु को पुष्ट करता है और संभोग में होने वाली सभी परेशानियों को दूर करता है। यह पेट और छाती को नरम रखता है। गर्मी की खाँसी को दूर करता है और स्त्रियों की बेहोशी के लिए यह बहुत ही लाभदायक है। यह ………………
बीरण गांडर :बीरण गांडर ठंडी होती है तथा ठंडे बुखार को दूर करती है। इसकी गुण भी खश के गुणों के समान होते हैं।………………
वृत्तगंड :
वृत्तगंड मीठा और शीतल होता है। यह बलगम, पित्त और दस्तों को खत्म करता है। यह खून को साफ करता है। यह खून सम्बन्धी समस्त बीमारियों के लिए लाभदायक होता है। वृत्तगंड दो प्राकार का होता है, इन दोनों में………………
बोल :बोल गैस से होने वाले रोगों को खत्म करता है। यह सर्दी से होने वाली सूजन को भी समाप्त करता है और दिमाग को स्वस्थ करता है। बोल का नशा करने से पेशाब और दस्त आता है। यह आंतों के दर्द और कीड़ों को नष्ट करता………………
बूदर चमड़ा :
बूदार चमड़े को जलाकर घावों पर लगाने से घाव ठीक हो जाते हैं। इसके बर्तन में पानी पीने से पागलपन खत्म हो जाता है………..
बुन :यह गले की आवाज को साफ करता है, गांठों को तोड़ता है और दर्द को दूर करता है। बुन दिल को बलवान बनाता है और मन को प्रसन्न रखता है। यह धातु को पुष्ट करता है, खून को साफ करता है और पेशाब लाता है। यह ………………
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