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आयुर्वेदिक औषधियां – भाग: 4 « सुदर्शन

 

दादमारी :

दादमारी के पत्तों को पीसकर दाद या खाज पर लगाने से दाद-खाज-खुजली में आराम मिलता है।.. …. ……. ….

दादमारी :

दादमारी तीखा, कडुवा,कब्ज को नष्ट करने वाला, और उष्णवीर्य है। इसके पत्ते अधिक ज्वलनशील होते है। उन्हे पीसकर त्वचा पर लगाने से जल्द ही जलन होकर आधे.. …. ……. ….

दुधेरी :

दुधेरी लघु, रूक्ष, तीक्ष्ण, तीखा, कडुवा, मधुर, उष्णवीर्य, खाने में कडुवा, कफ, पित्त को दूर करने वाला, उत्तेजक,यकृत को उत्तेजित करने वाला, पित्तसारक,दस्तावर. …. ……. ….

दुधिया हेमकन्द :

दुधिया हेमकन्द स्वाद में तीखा, मधुर, उष्णवीर्य (कुछ लोग शीत वीर्य मानते है), दर्द और वेगशामक, रक्तशोधक ,सूजनाशक, कफ,विष त्वचा संबंधी विभिन्न प्रकार के…. ……. ….

दूधिया लता :

दूधिया लता तीखा, भारी, कडुवा, रूखा, उष्णवीर्य, कब्जकारक, मूत्रवर्द्धक, कामोत्तेजना को बढ़ाने वाला, पेट के कीड़ों को नष्ट करने वाला, सफेद दाग, वातनलिक.. …. ……. ….

दुद्धी बड़ी(लाल) नागार्जुनी :

दुद्धी बड़ी के गुण धर्म छोटी दुद्धी के ही समान होते है। यह श्वासनलिका के आक्षेप में लाभकारी है। पुरानी खांसी,फेफड़ों का फूलना. वर्षा ॠतु की सांस का दौरा आदि.. …. ……. ….

डिजिटेलिस (DIGITALIS PURPUREA) :
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डिजिटेलस आकार में छोटा, तीखा, कड़वा, गर्म प्रकृति का तथा हृदय के रोगों को नष्ट करने वाला होता है। यह कफनाशक, पित्तवर्द्धक, पेशाब अधिक लाना, कफ को दूर करने वाला, बाजीकरण, गर्भाशय……. ….

डिकामाली (GARDENIA GUMMIFERA) :
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डिकामाली छोटा, रुखा, तीखा, कडुवा, गर्म प्रकृति का, कफवात को नष्ट करने वाला, उत्तेजक, पाचक, अनुकुल, संकोचक, घाव को भरने वाला, दर्द को दूर करने वाला, आमनाशक, हृदय को……. ….

डबलरोटी :
कैंसर 10 जनवरी 1979 (वफ़ी) नई दिल्ली, लीडन विश्वविद्यालय के (पश्चिमी जर्मनी) के प्रोफ़ेसर ग्रोएन ने एक नई खोज की, की अगर पेट के कैंसर से बचना हो तो भोजन में डबलरोटी की मात्रा बढ़ा देनी चाहिए…………..
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डाभ :

डाभ त्रिदोष नाशक होता है। यह मूत्रकृच्छ पथरी (पेशाब करने की जगह मे पथरी), प्यास, वस्तीरोग, प्रदररोग और रक्तविकार (खून की खराबी)को दूर करता है, गर्भ की स्थापना करता है तथा यह श्रम और रजोदोष का निवारन…………….

दही :
दही में प्रोटीन की क्वालिटी सबसे अच्छी होती है। दही जमाने की प्रक्रिया में बी विटामिनों विशेषकर थायमिन, रिबोफ़्लेवीन और निकोटेमाइड की मात्रा दुगनी हो जाती है। दूध की अपेक्षा दही आसानी से पच जाता है।…………….

दालचीनी :

दालचीनी मन को प्रसन्न करती है। सभी प्रकार के दोषों को दूर करती है। यह पेशाब और मैज यानि की मासिक धर्म को जारी करती है। यह धातु को पुष्ट करती है। यह उन्माद यानी की पागलपन को दूर करती है। इसका तेल…………….

डंडोत्पल :
डंडोत्पल सभी प्रकार की खांसी को दूर करता है। डंडोत्पल की टोपी बनाकर सिर में पहनने से बुखार उतर जाता है।…………….

हाथी का दांत :

हाथी दांत के बुरादे को शहद के साथ सेवन करने से दिमागी शक्ति और बुद्धि बढती है। यह दस्तों और खून के बहने को बंद करता है। इससे बनाया तेल संभोग शक्ति को बढाता है। हाथी दांत की ताबीज गले मे लटकाने से…………….

दन्ती :
दन्ती बहुत अधिक गर्म होती है। यह जलोदर (पेट मे पानी भरना), सूजन और पेट के कीड़ों को नष्ट करती है तथा गैस को समाप्त करती है।…………….

दारूहल्दी :

दारूहल्दी के पेड़ हिमालय क्षेत्र में अपने आप झाड़ियों के रूप मे उग आते है। यह बिहार, पारसनाथ और नीलगिरी की पहाड़ियों वाले क्षेत्र में भी पाई जाते है। इसका पेड़ 150 से लेकर 480 सेमीमीटर ऊंचा, कांटेदार, झाड़ीनुमा…………….

दशमूल :
दशमूल त्रिदोषनाशक,श्वास (दमा), खांसी, सिर दर्द, सूजन, बुखार, पसली का दर्द, अरुचि (भोजन का मन ना करना) और अफारा (पेट मे गैस) को दूर करता है। स्त्रियों के…………….

दशमूलारिष्ट :

दशमूल 600 ग्राम, चित्रक मूल, 300 ग्राम, गुडूची, कांड एवं पटिटका लोध्र 240 ग्राम, आमलकी 192 ग्राम, यवांसा पंचांग 144 ग्राम, खादिर त्वक, असन त्वक और हरीतकी प्रत्येक 96 ग्राम, विडंग, कुष्ठ, मंजिष्ठा, देवदारू, यष्टि मधु…………….

दौना (मरुवा) :
यह मन को प्रसन्न करता है। सूजनो को पचाता है और शरीर को शुद्ध करता है। यह मसाना और गुर्दे की पथरी को तोड़ता है। यह समलवाई की मस्तक पीड़ा के लिए लाभकारी होती है। यह सीने का दर्द, दमा, जिगर तथा…………….

देवदार :
देवदार दोषों को नष्ट करता है। सूजनों को पचाता है। सर्दी से उत्पन्न होने वाली पीड़ा को शांत करता है, पथरी को तोड़ता है। इसकी लकड़ी के गुनगुने काढ़े में बैठने से गुदा…………….

देवदारु :

देवदारु के पेड़ हिमालय के पर्वतीय क्षेत्र, वर्मा, बंगाल में अधिक होते है। इस पेड़ को जितनी अधिक जगह मिल जाए तो यह उतना ही बढ़ता है। 30-40 साल का होने पर इसमे फ़ल आने लगते है। देवदारु का पेड़ 100-200…………….

ढाक DAWNY BRANCH BUTEA :
ढाक का पेड़ पूरे भारत में पैदा होता है। इसके पेड़ की ऊंचाई 40 से 50 फ़ुट तथा टहनियों की चौड़ाई 5 से 6 फ़ुट होती है। इसकी टहनिया टेढ़ी-मेढ़ी और छाल हल्के भूरे रंग की होती है इसके पत्ते 5 से 8 इंच चौड़े होते है।……………
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धान :

उरक्षत (सीने मे घाव)- 6 ग्राम धान की खील को 100 ग्राम कच्चे दूध और शहद में मिलकर पियें। 2 घंटे बाद गाये के 200 ग्राम दूध में मिश्री मिलाकर पियें। इससे उरक्षत(सीने मे घाव)मिट जाता है।…………….

धनिया CORIANDER :
धनिये के हरे पत्ते और उनके बीजों को सुखाकर 2 रूपों में इस्तेमाल किया जाता है। हरे धनिये को जीरा, पुदीना, नींबू का रस आदि मिलाकर स्वादिष्ट बनाकर सेवन करने से अरुचि बंद हो जाती है, इससे भूख खुलकर लगती…………….

धतूरा Thorn Apple :

धतूरे का पौधा सारे भारत में सर्वत्र सुगमता के साथ मिलता है। आमतौर पर यह खेतों के किनारों, जंगलों में, गांवों में और शहरों में यहां-वहां उगा हुआ दिख जाता है। भगवान शिव की पूजा के लिए लोग इसके फल और…………….

धवई के फूल :
धवई के फूलों का अधिक उपयोग नशा लाता है। इसके उपयोग से गर्भ ठहरता है और प्यास, अतिसार (दस्त)तथा रुधिर के विकार नष्ट हो जाते है। इसके फूलों का काढ़ा दिन में बराबर मात्रा में लेने से प्रदर रोग नष्ट हो…………….

धाय :

धाय के पेड़ देहरादून के जंगलों में अधिक मात्रा में पाये जाते है। इसके अतिरिक्त यह अन्य प्रदेशों मे भी पाये जाते है। इसका पेड़ 6 से 12 फुट ऊंचा. घना, फैली हुई लम्बी टहनियों से युक्त होता है। इसकी टहनियों और…………….

ढेढस :
ढेढस देर में पचता है, इसका उपयोग गोश्त के साथ बुखार को दूर करता है बाकी इसके सभी गुण लौकी के गुणों के समान ही होते है…………….

धूप सरल :

धूप सरल शरीर की सूजनों को खत्म करती है, यह जख्मों की मवाद (पस) को साफ करके जख्मों को भरती है। यह मिर्गी, सूखी खांसी और दमे के लिए लाभकारी होता है, इसका लेप जख्म और घाव के दागों को मिटाता ……………

दियासलाई :
यदि बर्र, मधुमक्खी ने काटा हो तो दियासलाई (माचिस) का मसाला पानी में घिसकर शरीर के काटे हुए स्थान पर लगाने से लाभ मिलता…………….

द्राक्ष :

द्राक्षा एक श्रेष्ठ प्राकृतिक मेंवा है, इसका स्वाद मीठा होता है। इसकी गिनती उत्तम फलों की कोटि में की जाती है। इसकी बेल होती है। बेल का रंग लालिमा लिये हुआ होता है। द्राक्ष की बेल 2-3 वर्ष की होने लगती है। खासकर……………

द्रोणपुष्पी :
द्रोणपुष्पी का पौधा बारिश के मौसम में लगभग हर जगह पैदा होता है, गर्मी के मौसम में इसका पौधा सूख जाता है। इसकी ऊंचाई 1-3 फुट और टहनी रोमयुक्त होता है। इसके पत्ते तुलसी के पत्ते से समान 1-2 इंच लंबे 1 इंच…………….

हरी दूब CREEPING CYNODAN :

हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार दूब (घास) को परम पवित्र माना जाता है, प्रत्येक शुभ कामों पर पूजन सामग्री के रूप मे इसका उपयोग किया जाता है। देवता, मनुष्य, और पशु सभी को प्रिय दूब (घास), खेल के मैदान, मंदिर……………

दूध (MILK) :

दूध पुराने समय से ही मनुष्य को बहुत पसन्द है। दूध को धरती का अमृत कहा गया है। दूध में विटामिन ‘सी’को छोड़कर शरीर के लिए पोषक तत्त्व यानि विटामिन है। इसलिए दूध को पूर्ण भोजन माना गया है। सभी दूधों………….

औरत का दूध :

जिन लोगों को नींद नही आती है उन लोगों को नाक मे औरत का दूध डालने से नींद आ जाती है। औरत का दूध पीने से दिमाग की बहुत सारी बीमारियों मे लाभ होता है……………

गधी का दूध :

गधी का दूध ठंडक प्रदान करता है, मन को खुश करता है, गर्म प्रकृति वालों के दिल और दिमाग को ताकतवर बनाता है। यक्ष्मा (टी.बी), जीर्ण बुखार और फ़ेफ़ड़े के जख्म के लिए यह् दूध बहुत ही गुणकारी है, जिन लोगों…………….

गाय का दूध :

गाय का दूध जल्दी हजम होता है। खून और वीर्य को बढ़ाता है। वीर्य को मजबूत भी करता है। यह शरीर, दिल और दिमाग को मजबूत व शक्तिशाली बनाता है। यह मैथुन शक्ति (संभोग शक्ति) को बढ़ाता है। जीर्णस्वर, यक्ष्मा……………

िरनी का दूध :

हिरनी के दूध का सारा गुण नील गाय के दूध के गुणों के बराबर होता है।…………….

नील गाय का दूध :

नील गाय का दूध मन को खुश करता है इससे पेशाब ज्यादा आता है, यह शरीर को शुद्ध करता है और धातु को ताकतवर बनाता है।……………

शेरनी यानी बाघिन का दूध :

ज्यादातर लोग अपने बच्चो को निडर बनाने के लिए शेरनी का दूध पिलाते है, यह सर्दी की बीमारियों में राहत देता है, गुस्से को बढ़ाता है और हौसलो को मजबूत करता…………….

दूधी छोटी और दूधी बड़ी :

यह कफ़ (बलगम) के रोग को शांत करती है, यह कोढ़ और बवाई जैसी बीमारियों के लिये लाभदायक है, पेट के कीड़ो को नष्ट करती है और खांसी के लिये लाभकारी है…………….

सूअर का दूध :

सूअर का दूध शरीर को मोटा ताजा करता है। यह पुराने बुखार और टी.बी को शांत करता है। अंग्रेज लोग इसको अधिक पसंद करते हैं और वे अपने बच्चों को इसका दूध……………

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